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Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 69

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

सुनीता ने जस्सूजी की और देखा और अपना पेंडू से ऊपर धक्का मारकर जस्सूजी का लण्ड थोड़ा और अंदर घुसड़ने की कोशिश की। जस्सूजी समझ गए की सुनीता कितना ही दर्द हो, चुदाई को रुकने देना नहीं चाहती।

जस्सूजी भी तो रुकना नहीं चाहते थे। आज तो एक साथ दो काम सफल हुए। एक तो सुनीता को चोद ने का मौक़ा मिला और दूसरे सुनीता के पति की न सिर्फ पूर्ण सहमति बल्कि उनका साथ भी मिला।

किसीकी बीबी को उसकी सहमति के साथ चोदना एक बात है, पर उसके पति की सहमति से उसे चोदने का मजा ही कुछ और है। और जब पति भी साथ में सामने बैठ कर अपनी पत्नी की चुदाई ख़ुशी ख़ुशी देखता हो तो बात कुछ और ही होती है।

यह तो जिन्होंने अनुभव किया होगा वह ही जान सकते हैं। जब ऐसा होता है तो इसका मतलब है की आप अपना स्वार्थ, अहंकार और अपना सर्वस्व एक दूसरे के प्यार के लिए न्योछावर कर रहे हो। इसका मतलब है ना सिर्फ आप अपने दोस्त को बल्कि आप अपनी बीबी को भी बहुत ज्यादा प्यार करते हो।

पर इससे भी एक और बात उभर कर आती है। एक शादीशुदा औरत का एक पराये मर्द से चोरी छुपके चुदवाना अक्सर होता रहता है। यह कोई नयी बात नहीं है।

पर उस औरत का अपने मर्द की सहमति से या अपने मर्द के आग्रह से किसी पराये मर्द से चुदवाना एक दूसरे लेवल की ही बात है। इसमें ना सिर्फ मर्द की बड़ाई है पर उससे भी ज्यादा उस स्त्री का बड़प्पन है।

अक्सर अपने पति के सामने किसी गैर मर्द से चुदवाने में औरतें कतराती हैं, क्यूंकि अगर आगे चलके पति पत्नी में कोई तनातनी हुई तो पति पत्नी की उस करतूत को जाहिर कर पत्नी के मुंह पर कालिख पोतने की कोशिश कर सकता है।

इसी लिए पति और पत्नी दोनों का बड़प्पन तब ज्यादा होता है जब पत्नी किसी गैर मर्द से अपने पति के सामने चुदवाती है। ऐसा तो तभी हो सकता है जब पति और पत्नी में एक दूसरे के लिए अटूट विश्वास और बहुत ज्यादा प्यार हो।

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सुनीलजी ने जब पहले सुनीता को जस्सूजी से चुदवाने की बात की तो सुनीता को पूरा विश्वास नहीं था की उसके पति सुनीलजी सुनीता से उतना प्यार करते थे की कभी इस बातका नाजायज फायदा नहीं उठाएंगे।

शायद इस लिए भी वह जस्सूजी से चुदवाने के लिये तैयार नहीं हुई थी। उसे अपनी माँ को दिया हुआ वचन का सहारा (या बहाना ही कह लो) भी मिल गया था।

पर सुनीता ने देखा की सुनीलजी ने जब डॉ. खान के क्लिनिक में जस्सूजी और सुनीता को नंग्न हालत में देखा तो समझ तो गए की जस्सूजी और सुनीता ने उनकी गैर मौजदगी में चुदाई की थी।

फिर भी उन्होंने कोई कड़वाहट नहीं दिखाई और ना ही कोई गलत टिपण्णी की। बल्कि वह तो जस्सूजी का आभार जाहिर करते रहे। तब सुनीता को यकीन हो गया की सुनीलजी ना सिर्फ अपनी बीबी माने सुनीता को खूब प्यार करते थे बल्कि वह जस्सूजी से भी सच्चा प्यार करते थे।

जब प्यार सच्चा हो तो उसमें छिपने छिपाने के लायक कुछ भी नहीं होता। तब हमें जो ठीक लगता है वह हम बेझिझक कह और कर सकते हैं।

अगर पति और पत्नी में एक दूसरे के लिए सम्प्पूर्ण विश्वास होता है तब वह एक दूसरे के सामने किसी भी गैर मर्द या औरत (जो की पति और पत्नी दोनों को स्वीकार्य हो) को चुम्मी करना, गले लगना, यहां तक की उससे चोदना और चुदवाना भी हो सकता है।

सुनीता को आज ऐसा ही सुअवसर मिला था जब की उसे अपने पतिमें सम्पूर्ण विश्वास नजर आया। उसे यह चिंता नहीं थी की सुनीलजी आगे चलकर जस्सूजी से चुदवाने के बारे में कभी भी कोई नुक्ताचीनी करेंगे। क्यूंकि जब सुनीलजी ने खुद जस्सूजी का लण्ड अपने हाथोँ में लिया और उसे प्यार किया तो उससे बड़ी बात कोई हो नहीं सकती थी।

सुनीता ने अपने पति सुनीलजी का हाथ पकड़ कर फिर जस्सूजी के लण्ड के पास ले गयी। उसकी इच्छा थी की सुनीलजी जस्सूजी का लण्ड ना सिर्फ अपने हाथ में लें, बाकि उसे सहलाएं, उसे प्यार करें।

सुनीलजी भी समझ गए की सुनीता को उनका जस्सूजी का लण्ड पकड़ना अच्छा लगा था। सुनीलजी के ऐसा करने से सुनीता को शायद यह देख कर शान्ति हो गयी थी की सुनीलजी भी जस्सूजी से उतना ही प्यार करते थे जितना की सुनीता करती थी।

सुनीलजी ने अपनी उंगिलयों की गोल अंगूठी जैसी रिंग बनायी और सुनीता की चूत के ऊपर, सुनीता की चूत और जस्सूजी के लण्ड के बिच में जहां से लण्ड अंदर बाहर हो रहा था वहाँ रख दी। अपनी उँगलियों की रिंग सुनीलजी ने जस्सूजी के लौड़े के आसपास घुमाकर उसको दबा ने की कोशिश की।

पूरा लौड़ा तो उनकी उँगलियों में नहीं आया पर फिर भी जस्सूजी का चिकना लण्ड सुनीलजी ने अपनी उँगलियों में दबाया और उसे ऊपर निचे होते हुए उसमें भरी चिकनाहट सुनीलजी की उँगलियों में से होकर फिर सुनीता की रसीली चूत में रिसने लगी।

सुनीलजी ने करीब से अपनी बीबी की चूत में जस्सूजी का तगड़ा मोटा लण्ड कैसे अंदर बाहर हो रहा था वह दृश्य पहली बार देखा तो उनके बदन में एक अजीब सी रोमांच भरी सिरहन फ़ैल गयी। अपनी बीबी की रसीली चूत में उन्होंने तो सैकड़ों बार अपना लण्ड पेला था। यह पहली बार था की जस्सूजी का इतना मोटा और लम्बा लण्ड उनकी बीबी आज अपनी चूत में ना सिर्फ ले पा रही थी बल्कि उस लण्ड से हो रही उसकी चुदाई का वह भरपूर आनन्द भी उठा रही थी।

सुनीलजी की उँगलियों से बनी रिंग जैसे सुनीता की चूत के अलावा एक और चूत हो ऐसा अनुभव जस्सूजी को करा रही थी। जस्सूजी का लण्ड इतना लंबा था की सुनीलजी की उंगलियां बिच में अंदर बाहर आ जाने से उनको कोई फरक नहीं पड़ रहा था। बल्कि जस्सूजी तो और भी उत्तेजित हो रहे थे। तो इधर सुनीता भी अपने पति के इस सहयोग से खुश थी।

धीरे धीरे जस्सूजी की चुदाई की रफ़्तार बढ़ने लगी। पहले तो जस्सूजी एक हल्का धक्का देते, फिर रुक जाते और फिर एक और धक्का देते और फिर रुक जाते।

वह ऐसे ही बड़े हल्के से, प्यार से और धीरे से सुनीता की चूत में लण्ड डाल और निकाल रहे थे। जैसे जैसे सुनीता की कराहटें सिसकारियों में बदलती गयीं, वैसे वैसे जस्सूजी को लगा की वह सुनीता को चोदने के गति बढ़ा सकते हैं।

पहले सुनीता दर्द के मारे कराहटें निकाल रही थी। उसके बाद जब सुनीता की चूत जस्सूजी के लण्ड के लिए तैयार हो गयी तो कराहटें सिसकारियों में बदल ने लग गयीं। सुनीलजी समझ गए की उनकी बीबी सुनीता को अब दर्द से ज्यादा मझा आ रहा था। वह सुनीता की कराहटें और सिसकारियों से भलीभांति परिचित थे। सुनीता के हालात देखकर वह खुद भी मजे ले रहे थे। आखिर यही तो वह देखना चाहते थे।

जस्सूजी ने लण्ड को अंदर बाहर करने गति धीरे धीरे बढ़ाई। अब वह दो या तीन धक्के में अपना लंड अंदर डालते। अभी वह फिर भी अपनी पूरी तेजी से सुनीता को नहीं चोद रहे थे। पर शुरू के मुकाबले उन्होंने अब गति बढ़ा दी थी। जस्सूजी अपना पूरा लण्ड भी अंदर नहीं डाल रहे थे। उनका लण्ड करीब दो इंच चूत के बाहर ही रहता था।

कमरे में तीन तरह की आवाजें आ रहीं थीं। एक तो जैसे ही जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में घुसता था तो सुनीता की चूत से शायद गैस निकलने की आवाज “पच्च……” सी होती थी। उसके साथ साथ सुनीता की उँह…….. , ओह्ह्ह्हह्ह……… आअह्ह्ह…..” की आवाज और तीसरी जस्सूजी के तेज चलती हुई साँसों की आवाज। जैसे जैसे समय हो रहा था जस्सूजी के अंडकोष में उनका वीर्य फर्राटे मार रहा था। सुबह का हुआ उनका वीर्य स्राव की पूर्ति जैसे हो चुकी थी। उनके अंडकोष की थैली में फिर से वीर्य लबालब भरा हुआ लग रहा था।

सुनीलजी को लगा की जस्सूजी उनके होते हुए सुनीता को चोदने में कुछ हिचकिचाहट महसूस कर रहे थे। जब सुनीता ने सुनीलजी का हाथ पकड़ कर जस्सूजी के लण्ड के पास रखा था तो सुनीलजी को महसूस हुआ था की उनके ऐसा करने से जस्सूजी का आत्मविश्वास कुछ बढ़ा हुआ था।

सुनीलजी को लगा की सुनीता को और जस्सूजी को भरोसा दिलाने के लिए की उन्हें सुनीता को जस्सूजी से चुदवाने में कोई आपत्ति नहीं थी; सुनीलजी को कुछ और करना पडेगा।

सुनीलजी ने जस्सूजी को सुनीता को चोदने से रोका। फिर आगे बढ़ कर उन्होंने जस्सूजी को थोड़ा पीछे हटाया और झुक कर सुनीलजी ने जस्सूजी के लण्ड को अपने होँठों से चूमा। यह देख कर सुनीता के होँठों पर बरबस मुस्कान आगयी।

जस्सूजी के तो तोते उड़ गये हों ऐसे देखते ही रहे। पर इसका एक नतीजा यह हुआ की जस्सूजी ने भी सुनीलजी का लटकता लण्ड अपना हाथ लंबा कर पकड़ा और उसे धीरे धीरे बड़े प्यार से सहलाने लगे।

अपने दोनों प्रियतम को इस तरह से एक दूसरे से प्यार करे हुए देख कर सुनीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब उसे यकीन हो गया की उसके दोनों मर्द एक दूसरे से और सुनीता से भी खूब प्यार करते थे। अब उसे जैसे पूरी खुली छूट मिल गयी थी की वह अपने दोनों प्रियतम से जैसे चाहे प्यार करे और जैसे चाहे चुदाई करवाए।

सुनीता ने फ़ौरन आगे बढ़कर जस्सूजी के सामने घुटनों के बल बैठ गयी। जब उसके पति ने खुद जस्सूजी का लण्ड अपने होँठों से चूमा था तो फिर उसे जस्सूजी का लण्ड चूमने से परहेज करने की क्या जरुरत थी? सुनीता जस्सूजी को ऐसा प्यार करना चाहती थी की वह एक बार तो ज्योतिजी को भी भूल जाएँ।

सुनीता ने जस्सूजी का खड़ा मोटा और तगड़ा लण्ड का सिरा अपने होँठों के बिच लिया और प्यार से उसके ऊपर अपनी जीभ घुमाने लगी। जस्सूजी का पूर्व वीर्य से और अपनी चूत के स्राव से लिपटा हुआ जस्सूजी के लण्ड की चिकनाहट सुनीता अपनी जीभ से चाटने लगी। जस्सूजी का लंड ऐसा खम्भे जैसा था की उसे पूरा मुंह में लेना किसी भी औरत के लिए बड़ा ही मुश्किल था।

फिर भी सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपने मुंह में मुश्किल से ही सही पर घुसाया जरूर। जस्सूजी भी बड़े ही आश्चर्य से सुनीता का यह कारनामा देखते रहे। उनका लण्ड तो सुनीता की यह करतूत से फुला नहीं समा रहा था।

जस्सूजी के लण्ड सुनीता की यह हरकत बर्दाश्त करने में मुश्किल अनुभव कर रहा था। लण्ड के मन में शायद यह विचार आया होगा की अगर ऐसा ज्यादा देर चला तो उसे अपना वीर्य जल्दी ही छोड़ना पडेगा। सुनीता ने जस्सूजी की कुंल्हों को अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था और वह धीरे धीरे जस्सूजी से अपना मुंह चोदने के लिए इंगित कर रही थी।

जस्सूजी ने कभी सोचा भी नहीं था की सुनीता उनका लण्ड कभी अपने मुंह में भी लेगी। आज अपनी प्रियतमा से अपना लण्ड चुसवा कर वह चुदाई से भी ज्यादा रोमांच का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने सुनीता की इच्छा पूरी करते हुए सुनीता के मुंह को धीरे धीरे चोदना शुरू किया। सुनीता के गाल ऐसे फुले हुए थे की यह स्वाभाविक था की वह जस्सूजी का लण्ड बड़ी ही मुश्किल से अपने मुंह में ले पा रही थी।

घुटनों पर बैठे बैठे वह बार बार जस्सूजी के चहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी। क्या उसके प्रियतम को उसकी यह हरकत अच्छी लग रही थी? जस्सूजी के चेहरे के भाव देख कर यह समझना मुश्किल नहीं था की जस्सूजी सुनीता की यह हरकत का भरपूर आनंद उठा रहे थे।

जस्सूजी ने देखा की उनका लण्ड अपने मुंह में घुसाने में सुनीता को काफी कष्ट हो रहा था। वह फ़ौरन फर्श पर उठ खड़े हुए। उन्होंने ने सुनीता की दोनों बगल में अपना हाथ डाल कर सुनीता का हल्का फुल्का बदन एक ही झटके में ऊपर उठा लिया। जस्सूजी की तगड़ी बाँहों को सुनीता को उठाने में कोई कष्ट महसूस नहीं हुआ।

जस्सूजी ने सुनीता को उठाकर धीरे से उसकी चूत को अपने ऊपर की और टेढ़े हुए लण्ड के पास सटा दिया। फिर एक ही धक्के में अपने लण्ड को सुनीता की चूत में घुसा दिया। सुनीता फिर मारे दर्द के चीख उठी। पर अपने आपको सम्हाले हुए वह आगे झुकी और जस्सूजी के होंठ पर अपने होँठ रख कर जस्सूजी के सर को अपनी बाँहों में समेट कर अपनी चूत में जस्सूजी का लण्ड महसूस करती हुई उनको बेतहाशा चूमने लगी और पागल की तरह प्यार करने लगी।

जस्सूजी सुनीता को अपनी बाँहों में उठाकर बड़े ही प्यार से अपनी कमर से धक्का मार कर सुनीता को खड़े खड़े ही चोदने लगे। सुनीता भी जस्सूजी के हाथों से अपने बदन को ऊपर निचे कर जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए, रगड़ते हुए अजीबो गरीब रोमांच का अनुभव कर रही थी।

सुनीलजी कैसे बैठे बैठे यह नजारा देख सकते थे? वह भी खड़े हो गए और खड़े हुए कुछ देर जस्सूजी से अपनी बीबी की चुदाई का नजारा देखते रहे।

फिर थोडा सा करीब जाकर सुनीलजी ने सुनीता के दोनों स्तनोँ को पकड़ा और वह उन्हें दबाने और मसलने में मशगूल हो गए। जस्सूजी के ऊपर की और धक्के मारने के कारण सुनीता का पूरा बदन और साथ साथ उसके मम्मे भी उछल रहे थे।

कुछ देर बाद जस्सूजी ने सुनीता को धीरे से फिर से पलंग पर रखा। तब तक सुनीता की अच्छी खासी चुदाई हो चुकी थी।

पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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