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Drishyam, ek chudai ki kahani-17

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

जैसे ही अर्जुन वहाँ से निकला की सिम्मी ने कमरे का दरवाजा बंद किया और आ कर कालिया के सामने खड़ी हो गयी। सिम्मी की आँखों में अब कालिया से कोई भय नहीं था। वह कालिया को कुछ तरस भरी निगाहों से देख रही थी। अब कालिया था की वह सिम्मी की और ऐसे देख रहा था जैसे एक नौकर अपनी मालकिन से आदेश का इंतजार कर रहा हो।

सिम्मी ने कालिया की और देख कर पूछा, “बोलो, क्या करना है अब?”

कालिया सिम्मी के आक्रामक रवैये से झेंपता हुआ बोला, “कुछ नहीं…. सिम्मी… मैं कुछ सामान लाया हूँ। तुम यहां बैठ जाओ प्लीज।” कालिया ने शायद पहली बार सिम्मी से प्लीज शब्द प्रयोग किया होगा।

सिम्मी कुर्सी पर बैठ गयी। सिम्मी ने तिरछी नजर से देखा तो उसे रोशनदान के उसपार अँधेरे में सीढ़ी पर कुछ हलकी सी हलचल दिखाई दी। अर्जुन वहाँ बैठा सारा नजारा देख रहा था उसका सिम्मी को पक्का यकीन था।

कालिया ने फ़टाफ़ट अपनी बैग खोली और उसमें से लाल रंग की साड़ी और चुन्नी निकाली। फिर एक डिब्बी में से सिंदूर और कुमकुम निकाला। उसने कुछ चूड़े और चूड़ियां जो नयी नवेली दुल्हन पहनती हैं वह निकालीं। सारा साजोसामान कालिया ने टेबल रख दिया। सिम्मी ने कालिया की और देखा और बोली, “यह तुम क्या कर रहे हो? यह साड़ी और चुन्नी मुझे पहननी है क्या? तुम मुझे तुम्हारी नयी नवेली दुल्हन बनाना चाहते हो क्या?”

कालिया ने बुद्धू की तरह अपनी मुंडी हिला कर “हाँ” कहा।

सिम्मी ने पहले से ही हामी भर दी थी। उसे मना करने का कोई कारण नहीं था। सिम्मी आगे कालिया क्या करना चाहता था उसका इंतजार करती खड़ी रही।

कालिया ने अर्जुन की योजना के अनुसार साइड टेबल पर रखी हुई एक डिब्बी में से लाल कुमकुम निकाला। सिम्मी कुमकुम को देख कर समझ गयी और उसने आगे बढ़ कर वह डिब्बी अपने हाथ में ली और खुद आयने के सामने खड़ी हो कर डिब्बी में उंगली डाल कर उसमें से कुमकुम निकाल कर अपने कपाल पर नाक के ऊपर सही जगह पर कुमकुम का टिका लगा दिया। सिम्मी के गोर चेहरे पर कुमकुम का वह टिका सिम्मी की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहा था।

सिम्मी ने फिर कालिया जो लाल साडी और चुन्नी लाया था उसे लिया और दूसरे कमरे में चली गयी। कुछ ही देर में सिम्मी लाल साडी और चुन्नी पहन कर बाहर आयी तो कालिया तो क्या, सीढ़ी पर अंधरे में छिप कर देख रहा अर्जुन भी भौंचक्का सा रह गया। सिम्मी लाल साडी और चुन्नी में असल दुल्हन सी दिख रही थी

पर अभी तो और अलंकार पहनाने बाकी थे। कालिया काफी महँगा चूड़ा और चूड़ियां सिम्मी के लिए खरीद लाया था। कालिया ने उन्हें सिम्मी के सामने रखा। सिम्मी ने फटाफट उन्हें पहन लिया और हाथ हिलाकर वह कालिया और सीढ़ी पर छुपे हुए अर्जुन को उनकी आवाज सुनाने लगी।

कालिया ने इस रात के लिए काफी खर्च किया था। कालिया ने फ़ौरन एक काली बारीक महिम मोतियों जैसे दानों से गुंथा बीचमें सोने के लॉकेट से शोभायमान मंगल सूत्र अपने हाथों में लिया और कुछ झिझकते हुए सिम्मी को गले में पहना दिया। सिम्मी के लिए भी यह एक अजीब सा रोमांचक अवसर था। जैसे कालिया सिम्मी को शादी का रिहर्सल करवा रहा था। आखिर में कालिया ने सिम्मी के सामने सिंदूर की डिब्बी रख दी।

सिम्मी कुछ देर कालिया को ताकती रही फिर कुछ कटाक्ष से बोली, “अबे कालिया, तू आज रात के लिए मेरा पति बनना चाहता है ना? तू मुझे आज रात की अपनी दुल्हन बनाना चाहता है न? तो फिर देख क्या रहा है? आ और मेरी माँग में सिंदूर भर दे। शादी की रसम में पहली बार पति पत्नी की माँग में सिंदूर भरता है समझा?”

कालिया सिम्मी की खरीखरी सुनकर कुछ झेंप सा गया। फिर थोड़ा आत्मविश्वास पैदा कर, आगे बढ़ कर सिम्मी को कालिया ने अपने करीब खींचा और अपनी बाँहों में लिया। सिंदूर की डिब्बी में से सिंदूर निकाल कर अपने हाथों से सिम्मी की माँग में कालिया ने सिंदूर भर दिया।

सिम्मी ने कहा, “कालिया देख मैं आज तेरे लिए एक रात के लिए तेरी बीबी बनकर अकेले में तेरे साथ सोने के लिए तैयार हुई हूँ। क्योंकी मैं चाहती हूँ की तू एक अच्छा समझदार और सीधासादा इंसान बने और किसी से लड़ाई झगड़ा बवाल आदि ना करे। तो बोल तुम मेरी बात मानोगे या नहीं?”

कालिया ने सिम्मी का हाथ थामा और उसे दबाते हुए कहा, “सिम्मी, आज की रात के लिए अगर तू मेरी दुल्हन बनी हो तो आजकी पूरी रात मेरे साथ सुहाग रात मनाओगी? बोलो? फिर बिच में मुझे तुम्हें चोदने से रोकेगी तो नहीं? अगर तुम मुझसे पूरी रात चुदवाओगी तो मैं तुम्हें वचन देता हूँ की मैं तुम जो कहोगी वह करूंगा और जिंदगी भर तुम्हारा गुलाम बन कर रहूंगा।”

सिम्मी ने भी उसी तौर में जवाब दिया, “मुझे तुम्हें जिंदगी भर का गुलाम नहीं बनाना। कालिया, तुम बड़े ताकतवर हो। यह बात सही है। पर तुमने भी नारी शक्ति नहीं देखि। अगर तुम मेरी बात मानने के लिए तैयार हो तो मैं तुम्हें वचन देती हं की मैं तुमसे पूरी रात एक बीबी की तरह प्यार से चुदवाउंगी और तुम्हें कोई भी कारणवश चोदने से रोकूंगी नहीं। अब यह मामला पुरुष और नारी शक्ति के मुकाबले का है।”

कालिया ने सिम्मी की यह बात सुनकर सिम्मी को खिंच कर अपनी बाँहों में भर लिया। सिम्मी की और बड़े प्यार से देख कर कालिया बोला, “मेरी रानी अब मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरी।” जब कालिया ने सिम्मी की माँग में सिंदूर भर दिया तब सिम्मी पहली बार कालिया को उस तरह की प्रेमदृष्टि से देखने लगी जो कभी भी कालिया के नसीब में उस दिन तक नहीं था।

अपनी बहन को इस तरह सोलह श्रृंगार कर अभिसार के लिए तैयार हुए और कालिया से पूरी रात चुदवाने का वचन देते हुए अर्जुन ने देखा और सूना तो उस का मन रोमांच से भर गया। हालांकि यह श्रृंगार और यह भाव सिमित समय के लिए ही था। पर यह क्षणिक भाव भी उसे वह रोमांच देने लगा जो उसने अपनी पडोसी नयी नवेली दुल्हन देख कर अनुभव किया था। यह दॄश्य उसे आगे क्या नए नए परिक्षण करने के लिए मजबूर करेगा यह तो समय ही उजागर करेगा।

आगे अर्जुन जो दॄश्य देखने वाला था उसकी कल्पना मात्र से ही अर्जुन की जाँघों के बिच हलचल होनी शुरू हो गयी थी। उसकी जाँघों के बिच उसकी मर्दानगी तन कर सख्त हो रही थी।

अर्जुन के रोमांच का सिम्मी के दुल्हन जैसे सजने से क्या सम्बन्ध था यह तो शायद अर्जुन भी बताने में असमर्थ होगा। पर यह सच था की अर्जुन ने यह सारा तिकड़म सिम्मी को नयी नवेली दुल्हन जैसे सजधज कर कालिया से चुदवाये इसी लिए किया था।

हमारे मन में कई तरह के अजीबोगरीब काल्पनिक रोमांचकारी उत्तेजित करने वाले तिकड़म पनपते रहते हैं, जिनको हम प्रत्यक्ष प्रयोग कर एक अद्भुत रोमांच का अनुभव करते हैं। कई लोग अंग्रेजी में इसे परवर्ज़न (Perversion) माने मानसिक विकृति भी कहते हैं। जहां तक यह मानसिक विकृति अथवा यूँ कहें की यह रोमांचकारी मानसिक फितूर किसी शारीरिक या मानसिक हिंसा को जन्म नहीं देता वहाँ तक इसमें कोई बुराई नहीं।

कालिया के सिंदूर लगाते ही सिम्मी का भी जैसे मानसिक परिवर्तन हो गया। सिम्मी के मन में एक नयी नवेली दुल्हन से भाव पनपने लगे। उसे अपने पति के प्रति समपर्ण के भाव जागृत हुए,जैसे एक नवविवाहिता दुल्हन के होते हैं। कालिया के प्रति सिम्मी के मन में घृणा का जो भाव था वह तो पहले से ही कम हो चुका था, या नहींवत ही रह गया था। पर अब उसके मन में कालिया के प्रति आत्म समर्पण का भाव हुआ।

जैसे ही कालिया ने सिम्मी को अपने आहोश में लिया तो सिम्मी भी कालिया की विशाल बाँहों में ऐसी सिमट गयी जैसे एक भुजंग अजगर के आहोश में कोई दुबला हिरन हो। सिम्मी जैसे एक लता कोई वृक्ष से लिपटी हो ऐसे कालिया से लिपट गयी। कालिया सिम्मी से काफी लंबा और हट्टाकट्टा तो था ही। कालिया ने एक झटके में सिम्मी को अपनी बाँहों में उठा लिया और सिम्मी के होँठों को अपने होँठों से मिलाकर उसे चुम्बन करने के लिए प्रवृत्त हुआ।

सिम्मी ने पिछली दो बार की तरह इस बार कालिया का कोई प्रतिरोध नहीं किया। बल्कि अपने रसीले होँठ कालिया को प्यार से ना सिर्फ सौंप दिए बल्कि सिम्मी कालिया के सूखे होँठों को चूसने लगी और अपनी जीभ कालिया के मुंह में डालकर उसकी लार को अपने मुंह में लेने लगी।

कालिया की समझ में आने लगा की यदि प्रियतमा साथ दे तो सम्भोग कितना आनंद दे सकता है। खैर सम्भोग की प्रक्रिया तो अब शुरू ही हुई थी। तभी उसे गजब का रोमांच महसूस हो रहा था।

सिम्मी के रसीले होँठों का ऐसा समर्पण महसूस कर कालिया के आनंद का कोई ठिकाना नहीं था। वह मन ही मन अर्जुन का शुक्रिया अदा करने लगा जिसने कालिया को यह सारा आइडिया दिया था। कालिया ने भी सिम्मी के होँठों को बड़े प्यार और जोश से चूसना शुरू किया। दोनों होँठों की जोड़ी एक दूसरे से जुड़ कर ऐसी उन्मादक आवाज पैदा कर रही थी जिसे सुन कर सीढ़ी पर बैठ कर देख रहे अर्जुन का लण्ड उसकी निक्कर में समा नहीं रहा था।

कालिया अपनी जीभ को बार बार सिम्मी के मुंह में डाल कर ऐसे अंदर बाहर कर रहा था जैसे कालिया सिम्मी के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो। सिम्मी भी इस मुंह चुदाई का भरपूर आनंद ले रही थी।

कालिया ने उसका कौमार्यभंग किया था और अब कालिया ने उसे एक रात के लिए ही सही, पर अपनी पत्नी का दर्जा दिया था। तो अब सिम्मी को भी लगा की उसका एक पत्नी के रूप में कर्तव्य है की पति को वह सारा सुख दे जो एक पत्नी अपने पति को शारीरिक सम्भोग में दे सकती है।

हालांकि सिम्मी कद, लम्बाई और वजन में ज्यादा नहीं थी, फिर भी कालिया की बाजुओं की ताकत भी सराहनीय थी क्यूंकि कालिया ने करीब पांच मिनट तक, जब तक उनका चुम्बन चलता रहा तब तक सिम्मी को अपनी बाँहों में ऊपर उठाकर उसे चुम्बन करता रहा। फिर हलके से सिम्मी को निचे कर वह पलंग पर बैठा और सिम्मी को अपनी गोद में बिठा दिया।

कालिया का तगड़ा लण्ड उसकी निककर में से बाहर निकलने के लिए तड़प रहा था। सिम्मी ने उसे अपने पिछवाड़े पर महसूस किया जब वह कालिया की गोद में जा बैठी। पर उसे उस रात इसकी कोई शिकायत या उसका कोई भय नहीं था।

कालिया ने हलके से सिम्मी के ब्लाउज के ऊपर अपना हाथ रखा। इस बार सिम्मी को कालिया का हाथ रखना अच्छा लगा। उसे मन हुआ की कालिया पिछली बार की तरह इस बार भी सिम्मी के गोरे गोरे स्तन मंडल को अच्छी तरह से ऐसे मसले जैसे औरतें रोटियां बनाने के लिए गिला आटा गूंधतीं हैं।

सिम्मी ने खुद कालिया के हाथ पर अपना हाथ रखा और उसके हाथ को दबाकर इशारा किया की कालिया सिम्मी की चूँचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही अच्छी तरह से मसले।

पढ़ते रहिये कहानी आगे जारी रहेगी!

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