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Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 72

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

जस्सूजी हालांकि सुनीता को पहले भी चोद चुके थे पर सुनीता के लिए हर बार जब भी जस्सूजी का लण्ड उसकी चूत में दाखिल होता था तो पता नहीं क्यों, सुनीता के पुरे बदन में जैसे एक अजीब सी तीखी मीठी सिहरन फ़ैल जाती थी। अपने पति से चुदवाना भी सुनीता को काफी आनंद देता था पर जस्सूजी के लण्ड की बात ही कुछ और थी।

शायद यह जस्सूजी के प्यार करने के तरीके से या फिर जस्सूजी के गठीले बदन के अनुभव से या फिर उनके भारी मोटे और लम्बे लण्ड से हो; पर जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में कुछ और ही उन्माद की लहर फैला देता था जैसे सुनीता के जहन मन उन्माद को कोई सैलाब आया हो।

जस्सूजी ने जैसे धीरे धीरे अपना लण्ड सुनीता की चूत की सुरंग में पेलना शुरू किया की सुनीता बार बार उन्मादित रोमांच से सिहरने लगी। रोमांच के मारे उसके बदन के सारे बाल जैसे खड़े हो गए। उसकी चूत में अजीब सी सिहरन और फड़कन शुरू हो गयी।

जैसे ही चूत की सुरंग की त्वचा फड़कती थी की वह जस्सूजी के लण्ड को एक वाइस की तरह जकड लेती थी। जिसके कारण जस्सूजी को एक अजीब अनूठा अहसास काअनुभव होता था।

जस्सूजी ने महसूस किया की दूसरी बार सुनीता जस्सूजी के लण्ड को अंदर लेते हुए पहले की तरह हिचकिचा नहीं रही थी। वह एक अनुभवी प्रेमिका साथी की तरह चुदाई करवाने के लिए बड़े आत्म विश्वास से साथ दे रही थी। जैसे जैसे जस्सूजी ने अपनी फुर्ती बढ़ाई, सुनीता ने भी पूरा साथ देते हुए अपने कूल्हे उठा कर जस्सूजी का पूरा साथ दिया।

एक चोदने वाले पुरुष के लिए इससे अधिक और आनंद की बात क्या हो सकती थी? सुनीता को और आनंद देने के लिए जस्सूजी थोड़ा टेढ़ा होकर अपने लण्ड को अलग अलग एंगल से सुनीता की सुरंग में चोदते जा रहे थे। अब पीछे से सुनीता की गाँड़ पर अपना खड़ा लण्ड रगड़ने की बारी सुनीता के पति सुनीलजी की थी।

सुनीलजी ने पीछे से अपनी बीबी की नंगी कमर पर अपने दोनों हाथ टिकाये हुए थे और वह अपना लण्ड सुनीता की गाँड़ की दरार में रगड़ते जा रहे थे। सुनीता अपनी गाँड़ पर अपने पति का फिर से खड़ा हुए लण्ड को महसूस कर रही थी। सुनीता को उस दिन जस्सूजी को पूरी ऊंचाई अपने चरम तक ले जाने की इच्छा थी। सुनीता जस्सूजी से अलग अलग पोजीशन में चुदवाना चाहती थी और वह भी अपने पति के सामने।

सुनीलजी बार बार सुनीता को जस्सूजी से चुदवाने के बारे में इशारा करते रहते थे। अब तक सुनीता पति की बात टालती रही थी। पर आज उसे सुनहरा मौक़ा मिला था पति की इच्छा पूरी करने का और सच बात तो यह भी थी की उसकी अपनी भी इच्छा पूरी करने का।

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सुनीता ने जस्सूजी को रुक जाने का इशारा किया। जस्सूजी ने सुनीता की और प्रश्नात्मक भाव से देखा। सुनीता ने जस्सूजी के होँठों पर हलकी सी चुम्मी कर थोड़ा सा पीछे हट कर उनका लण्ड अपनी चूत से निकाल दिया और उस झूलते हुए मोटे रस्से जैसा जस्सूजी का लण्ड अपने हाथ में लेकर उसे प्यार से सहलाते हुए अपने पति, जो की बिस्तर में लेटे हुए थे उनके पाँव के पास पहुंची।

जस्सूजी को अपनी बगल में खड़ा रख कर सुनीता ने सुनीलजी के दोनों पाँव चौड़े किये और खुद बिच में आ गयी। बदन को घुटनों पर टिकाकर अपनी गाँड़ ऊपर की और उठाकर सुनीता ने आगे झुक कर अपने पति का लण्ड के अग्र भाग (टोपे) को बड़े प्यार से चूमा और जस्सूजी को अपने पीछे आने का इशारा किया।

जस्सूजी सुनीता की इच्छा समझ गए। सुनीता अपने पति का लण्ड चूसते हुए खुद घोड़ी बनकर जस्सूजी से पीछे से चुदवाना चाहती थी। जस्सूजी ने आगे बढ़कर सुनीता की गाँड़ से अपना लण्ड सटा दिया। सुनीता ने उसे अपने हाथ में पकड़ कर सहलाते हुए अपनी चूत पर रगड़ा और धीरे से अपनी चूत की पंखुड़ियों को खोल कर उसके बिच अपने प्रेम छिद्र में हल्का सा घुसाया। बाकी काम जस्सूजी ने आगे से धक्का मार कर पूरा किया।

जस्सूजी का लण्ड पीछे से चूत में घुसते ही सुनीता की चीख निकल गयी। थोड़ा सा धक्का ज्यादा लगने से और चूत चिकनी होने के कारण जस्सूजी का लण्ड काफी अंदर घुस गया था। जैसे तैसे सुनीता ने अपने आप को सम्हाला। आगे सुनीता अपने पति का लंड चूस रही थी तो पीछे से जस्सूजी सुनीता को घोड़ी बनाकर सुनीता की चूत में अपना लण्ड पेलने लगे और उसे हलके धक्के मार कर चोदने लगे।

सुनीता की भरी हुई चूँचियाँ हवा में मस्ती से झूल रही थीं। जस्सूजी ने अपने हाथ आगे कर उनको अपने दोनों हाथों की हथेलियों में पकड़ा और उन्हें प्यार से दबाने और मसलने लगे।

सुनीता जस्सूजी के पीछे से लगते हुए धक्कों से पूरी तरह हिल रही थी और उसे अपने पति का लण्ड चूसने में भी कुछ कठिनाई हो रही थी। यह देखते हुए जस्सूजी ने सुनीता की नंगी सुनीता की कमर दोनों हाथों से पकड़ कर सुनीता को थोड़ा संतुलित और स्थिर करने की कोशिश करते हुए अपने पीछे धक्के मारने की रफ़्तार कम की।

पर ऐसा करने से जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में ज्यादा गहराई तक चला गया। सुनीता की चूत में अब उसे आगे जाने देने के लिए जगह ही नहीं थी। वह सुनीता की बच्चे दानी को धक्के मारने लगा। सुनीता फिर से चीख उठी। जस्सूजी सुनीता की सेहमी हुई चीख सुनकर थोड़े चिंतित हो गए और थम गए। पर सुनीता वैसे ही खड़ी रही तो जस्सूजी अपने धक्के के पीछे जोश कम कर हलके हलके से ही सुनीता की चूत में अपना लण्ड पेलने लगे।

सुनीता को अब मजा आ रहा था। सुनीलजी अपनी बीबी के बालों में अपनी उंगलियां डाल कर सुनीता का माथा पकड़ कर अपने लण्ड को चुसवाने का मजा ले रहे थे। ऐसे ही कुछ देर चलता रहा तब सुनीलजी ने थोड़ा सा ऊपर उठ कर अपनी बीबी सुनीता के कानों के पास अपना मुंह लाकर (जिससे की पीछे से सुनीता को चोद रहे जस्सूजी सुन ना सके) पूछा, “डार्लिंग, इतना तो तुम कर ही चुकी हो। तो क्यों ना आज तुम हम दोनों से एक साथ चुदवालो? बोलो, कर सकती हो?”

सुनीता ने अपनी आँखें खोल कर अपने पति की और देखा। उसकी आँखों में सवाल था की आखिर उसके पति क्या चाहते थे?

सुनीलजी ने कहा, “क्या तुम मेरे और जस्सूजी से एक साथ चूत और गाँड़ मरवाना चाहोगी? अगर तुम हिम्मत करो तो?” कह कर सुनीलजी जैसे अपनी बीबी की मिन्नत करते हुए सुनीता के बालों को चूमने लगे।

सुनीता ने धीमी आवाज में कहा, “क्या तुम मुझे मरवाना चाहते हो?

सुनीलजी ने उतनी ही धीमी आवाज में अपनी बीबी की मिन्नत करते हुए कहा, “देखो, मेरा तो अब ढीला पड़ चुका है। वह क्या परेशान करेगा? और फिर मैं हर्बल तेल से उसे पूरी तरह सराबोर करके ही घुसाउँगा। प्लीज? करने दो ना? बस एक बार? थोड़े से समय के लिए ही?”

अपने पति की बचकाना बातें सुनकर सुनीता की हंसी फुट पड़ी। इतने बड़े पत्रकार, जिनका हर तीसरे दिन टीवी पर साक्षात्कार होता है और आम जनता जिन के शब्दों का इतना विश्वास करती है, वह अपनी बीबी के सामने उसे दो मर्दों से एक साथ चुदवाने के लिए कैसे गिड़गिड़ा रहे थे? सुनीता यह देख कर हैरान थी।

किसीने सच ही कहा है की आखिर मर्द लोग कितने ही बड़े क्यों ना हों? जब उनका पाला कोई सेक्सी खूब सूरत औरत से पड़ता है तो वह अपने लण्ड के आगे कितने लाचार हो जाते हैं? यह उसने देखा। सुनीलजी जैसा बड़ा पत्रकार भी अपनी विलक्षण तृष्णा (फंतासी) के सामने अपनी बीबी को दो मर्दों से एक साथ चुदवाने के लिए कितना बेताब था?

सुनीता सोचने लगी की क्या किया जाए? उसका मन किया की पति की इस ख्वाहिश को हर बार की तरह इस बार की ठुकरा कर प्यार से जस्सूजी से चुदवा कर अपनी जान छुड़ाए। पर उस दिन सुनीता के दिमाग भी एक तरह का चुदाई नशा छाया हुआ था। सुनीता ने उस दिन ऐसा काम किया था जो कोई भी स्त्री के लिए और ख़ास कर भारतीय नारी के लिए सपने के सामान अकल्पनीय था। सुनीता ने अपने पति के देखते हुए अपने पड़ौसी और प्रियतम जस्सूजी से चुदाई करवाई थी।

जब बात यहां तक ही पहुँच गयी है तो फिर सुनीता ने सोचा चलो एक कदम आगे भी चल लेते हैं। वह अपने पति पर उस दिन बड़ी ही कायल थी। जब उसके पति सुनीलजी ने एक ही बिस्तर में उसे जस्सूजी के साथ नग्न हालात में सोते हुए देखा तो जाहिर था की जस्सूजी ने उस रात उनकी बीबी सुनीता को चोदा ही होगा। पर फिर भी वह ना सिर्फ कुछ भी ना बोले, बल्कि उन्होंने यह सब जानते और समझते हुए भी जस्सूजी को बड़ा प्यार और दुलार किया और अपने आप को सुनीता को ना बचाने की लिए कोसा भी।

सुनीता के मन में अपने पति के लिए बड़े ही गर्व और प्यार का भाव उमड़ पड़ा। उसके मन के कोने में भी कहीं ना कहीं ऐसी विलक्षण तृष्णा रही होगी की कभी ना कभी वह दो मर्दों से एक साथ चुदवाएगी। आज उसे उसके पति ने बड़े ही मिन्नतें करते हुए जब आग्रह किया तो सुनीता उन्हें मना नहीं कर पायी।

सुनीता ने हाँ तो नहीं कहा पर अपने पति के कान में धीमे से बोली, “जानू, यह देखना की मुझे ज्यादा दर्द ना हो।”

सुनीता की बात सुनकर सुनीलजी उछल पड़े। उनके मन की सबसे बड़ी विचित्र कामना शायद उनकी बीबी आज पूरी करेगी यह जान कर सुनीलजी फ़ौरन उठे और वैसे ही नंगे चलकर कमरे में कुछ ढूंढने लगे।

जस्सूजी सुनिका चूत में अपना लण्ड पेलते हुए देख रहे थे की पति पत्नी में कुछ प्राइवेट वार्तालाप चल रहा था। शायद वह उनको नहीं सुनना चाहिए था इसी लिए सुनीता और सुनीलजी ने दोनों आपस में गुपचुप कुछ घुसपुस कर रहे थे। जब सुनीलजी को पलंग पर से उठ कर एक तरफ हट कर कमरे में कुछ ढूंढते हुए देखा तो सोचमें पड़ गए की क्या बात थी? कुछ ना कुछ खिचड़ी तो जरूर पक रही थी।

खैर वह सुनीता की चूत को पीछे से चोदने में ही मशगूल रहे। सुनीता की गाँड़ जिस तरह चुदाई होते हुए छक्पका रही थी और सुनीता उनके धक्के से जैसे हिल रही थी, यह दृश्य उनके लिए अतिशय ही रोमांचकारी और उन्मादक था।

जस्सूजी से पीछे से चुदवाते हुए सुनीता अपनी गाँड़ के गालों को कभी कभी चांटा मारती रहती थी तो कभी कभी अपनी चूत की पंखुड़ियों को अपनी उँगलियों में पकड़ कर रगड़ रही थी। अपनी चूत की पंखुड़ियों को रगड़ते हुए उसकी उंगलिया बरबस जस्सूजी के बड़े घंटे को छू जाती थी। जस्सूजी का तगड़ा लण्ड इंजन के पिस्टन की तरह सुनीता की चूत में से “फच्च फच्च” आवाज करता हुआ अंदर बाहर हो रहा था। उसको छू कर भी सुनीता के पुरे बदन में कुछ हकचल सी हो जाती थी।

शायद सुनीता की उन्मादकता और भी तेज हो जाती थी। कभी कभी जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में झेलते हुए वह जस्सूजी के हाथों के ऊपर अपने हाथ रख कर अपने खुद की चूँचियों को भी दबा कर अपनी उत्तेजना व्यक्त करती रहती थी।

जस्सूजी से पीछे से चुदवाते हुए सुनीता को एक अजीब सा ही भाव हो रहा था। उसे घोड़ी बनकर चुदवाना बहुत पसंद था और कई बार अपने पति से वह उस पोजीशन में चुदवा चुकी थी। पर उसे जस्सूजी के तगड़े लण्ड से पीछे से चुदवाने में कुछ अजीब सा ही भाव हो रहा था।

सुनीता चाहती थी की उसदिन वह जस्सूजी से पूरा मन भर ने तक चुदाई करवाती ही रहे। सुनीता आँखें बंद कर जस्सूजी के लण्ड को अपनी चूत के अंदर बाहर करने का आनंद ले रही थी की अचानक जस्सूजी थम गए और उन्होंने धीरे से अपना लण्ड सुनीता की चूत में से निकाल लिया। सुनीता ने पीछे मूड कर देखा तो समझ गयी की अब उसकी उसके दोनों छिद्रों में चुदाई होने वाली थी, क्यूंकि सुनीलजी जस्सूजी के पीछे खड़े अपने लण्ड पर कोई तेल जैसा चिकना ऑइंटमेंट लगा रहे थे।

सुनीता को थोड़ा खिसका कर जस्सूजी पलंग पर लेट गए और सुनीता को अपने बाजुओं को लम्बा कर अपने ऊपर चढ़ने का आवाहन किया। सुनीता ने जस्सूजी की भुजाओं को पकड़ कर अपने बदन को थोड़ा सा टेढ़ा हो कर जस्सूजी के खड़े लण्ड को, जो की छत की और दिशा सुचना करते हुए पहले की ही तरह अडिग और कड़क खड़ा था उसे अपनी चूत के केंद्र में टिका दिया।

फिर हर बार की तरह उस लण्ड को उँगलियों में पकड़ कर उसे अपनी चूत की पंखुड़ियों में रगड़ते हुए अपनी चूत के केंद्र बिंदु छिद्र पर टिका दिया। थोड़ा सा नीचा झुक कर अपना नंगा बदन नीचा कर जस्सूजी के लण्ड के चिकनाहट से लथपथ लण्ड को धीरे से अपनी चूत में घुसाया। कुछ देर तक गाँड़ सहित अपने निचे वाले बदन को ऊपर निचे कर वह जस्सूजी को अपनी चूत से चोदने लगी। उस बार उसे कोई खास दर्द का अनुभव नहीं हुआ।

धीरे धीरे जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में काफी घुस गया। सुनीता ने फिर झुक कर जस्सूजी के ऊपर अपने पुरे बदन को लिटा दिया और जस्सूजी के होंठों से अपने होँठ मिलाकर उसे चूमने और चूसने लगी। ऐसा करते हुए सुनीता ने अपनीं गाँड़ थोड़ी सी और ऊपर की। सुनीलजी सुनीता को जस्सूजी के ऊपर लेटने का ही इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही सुनीता जस्सूजी के ऊपर लेट गयी और अपनी गाँड़ थोड़ी सी ऊपर की की सुनीलजी को सुनीता की गाँड़ का छोटा सा छिद्र दिख पड़ा। हालांकि सुनीता के ऐसा करने से जस्सूजी का लण्ड चूत में से काफी बाहर निकला हुआ था पर चूँकि वह इतना लंबा था की फिर भी वह सुनीता की चूत में काफी अंदर तक घुसा हुआ था।

सुनीता को जस्सूजी को चोदते हुए देखते देखते वह अपने लण्ड पर कोई चिकनाहट भरा प्रवाही जो तेल जैसा चिकना और स्निग्ध था उसे भरपूर लगा रहे थे।

सुनीता की गाँड़ का छिद्र देखते ही सुनीलजी ने वह ऑइंटमेंट अपनी उँगलियों में अच्छी तरह लगाया और फिर वह उंगली सुनीता की गाँड़ के छेद में डाली।

सुनीलजी बार बार सुनीता की गाँड़ के छेद में ऑइंटमेंट से भरी हुई उंगली डाल कर सुनीता की गाँड़ उस चिकने तेल से भर देना चाहते थे जिससे की वह जब अपना लण्ड सुनीता की गाँड़ में डालें तो वह आसानी से उस छिद्र में घुस जाए।

पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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