Hindi Sex StoriesUncategorized

Ranjan Ki Vapasi, Chudai Ka Tufaan – Episode 1

पिछले तीन हफ्तों में मेरे साथ बहुत कुछ हो चूका था. पहले हफ्ते असुरक्षित चुदाई में डीपू पति के दोस्त ने चोदा (“अदला बदली, संयोग या साजिश“), और फिर मैना के पति संजीव के साथ महीने के सबसे खतरनाक दिनों में चुदाई के वक़्त कंडोम का फट जाना (“मैना का घोंसला, चुदा मेरा हौंसला“).

मेरे पीरियड आने में सिर्फ एक सप्ताह बचा था और हर एक दिन के साथ मेरा डर बढ़ता जा रहा था.

अगर गर्भवती हो गयी तो मेरे पति अशोक को क्या बोलूंगी, क्या इल्जाम डीपू पर डाल दू? पर वो पूछेंगे उसने मेरे साथ कब किया तो क्या बोलूंगी? मैंने हर वक्त ये झुठलाया था कि डीपू ने मेरे साथ कुछ किया था.

सासू जी अपने घर जा चुके थे और जाते वक़्त अपने पोते को भी साथ ले गए, क्यों कि थोड़े दिन बाद हम वैसे भी वहा जाने वाले थे.

शुक्रवार की शाम को ऑफिस से लौटने के बाद अशोक एक और खबर ले कर आये. रंजन विदेश से आ चूका था और उसकी सगाई होने वाली थी. इसी सिलसिले में वो हमारे शहर कुछ खरीददारी के लिए आने वाला था और हमारे साथ रुकना चाहता था.

पहले से ही गर्भवती होने का डर ऊपर से ये और मुसीबत. खास तौर से जब अशोक को पता था कि रंजन के साथ हमने पिछली बार क्या किया था, फिर घर में ठहराना मतलब घास को आग दिखाना.

कम शब्दों कहा जाए तो जाए तो रंजन मेरे बच्चे के असली बाप के तीन उमीदवारो में से एक था. जिसको मैंने और मेरे पति ने मिलकर फंसाया था ताकि वो मुझे गर्भवती कर सके (पूरी कहानी पढ़िए “समझोता साजिश और सेक्स“).

मैंने रंजन को लेकर अपना डर पति के सामने रख दिया.

Related Articles

मैं: “आपको अच्छे से पता हैं उसने मेरे साथ उस रात को स्लीपर बस में क्या किया था, ये जानते हुए हुए भी उसको मेरे यहाँ होते हुए ठहराना! वो फिर से ऐसी हरकत कर सकता हैं. उसके हिसाब से तो मैं भी तैयार थी उसके साथ संबंध बनाने के लिए.”

अशोक: “वो मेरा दूर के रिश्ते में भाई हैं, उसको मैं घर आने से कैसे रोक दू? सब रिश्तेदारों को पता लगेगा मैंने उसकी ठहरने में मदद नहीं की तो कैसा लगेगा.”

मैं: “अगर उसने मुझ पर हमला कर मुझे पकड़ कर कुछ कर दिया तो?”

अशोक: “वो रविवार को सुबह आएगा और मैं उसको दिन भर शॉपिंग पर ले जाऊंगा. शाम को खाना खा कर के सो जायेगा, और मैं तो तुम्हारे साथ ही होऊंगा ना. उसकी हिम्मत नहीं होगी.”

मैं: “सोमवार को तो तुम ऑफिस चले जाओगे, जब कि वो यही रहेगा मेरे साथ अकेला, उसकी शाम को वापसी की ट्रैन तक.”

अशोक: “उसकी चिंता मत करो, मैं सोमवार की छुट्टी ले लूंगा. वो वैसे भी दोपहर में बाकी की बची शॉपिंग करेगा.”

मैं: “तुम्हे क्या लगता हैं, उसको पता चल गया होगा कि पिछली बार बस में उसने जो कुछ भी किया वो हम दोनों की दोनों की साजिश थी?”

अशोक: “नहीं, मुझे नहीं लगता, उसको ऐसे कैसे पता चलेगा? ”

मैं: “फिर भी, बहुत ध्यान रखना पड़ेगा. अगर उसने ये मान लिया कि वो बच्चा उसी का हैं तो?”

अशोक: “तुम खा-मख़ा घबरा रही हो. कुछ नहीं होगा. चिंता मत करो.”

रविवार को देर सुबह रंजन हमारे घर पहुंच गया. मैं उसके सामने आने से बचती रही. अशोक ने उसे हमेशा अपने साथ बिजी रखा. वो मौका देखते ही मुझे घूरने लगता, और मुझे डर लगता कब वो क्या कदम बढ़ा ले.

अशोक उसे बाहर शॉपिंग पर ले गए और सीधा देर शाम को ही वो दोनों ढेर साड़ी शॉपिंग कर घर लौटे. मैंने तब तक खाने की तैयारी कर ली थी. उनके फ्रेश होते ही उनको खाना भी खिला दिया था.

हमेशा मैं रात को स्लीप शार्ट पहनती हूँ, पर रंजन जरा सा भी छोटे कपडे देख भड़क ना जाए इसलिए मैंने पूरा पाजामा पहना.

वो दोनों हॉल में बैठ कर बातें कर रहे थे और मैं रसोई के बाकि के काम निपटा रही थी. थोड़ी देर में उन दोनों में कोई गंभीर चर्चा होने लगी. मैं भी अपना काम छोड़ रसोई के दरवाजे के करीब आ उनकी बात सुनने लगी.

रंजन: “अशोक तुम मानो या ना मानो पर मुझे पूरा यकीन हो गया हैं तुम भी प्रतिमा के साथ मिले हुए थे. मेरे दोस्तों को लगा मैं झूठी कहानी बना रहा हूँ. मेरी कहानी सुन उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि तुम पास में लेटे हुए थे फिर भी तुमको भनक तक नहीं लगी कि मैं और प्रतिमा क्या कर रहे थे. ऐसे कैसे हो सकता हैं.”

अशोक: “मैं फिर से कह रहा हूँ, तुम्हे कोई गलत फहमी हुई हैं. प्रतिमा जानबूझ कर ऐसा नहीं कर सकती. शायद उसे नींद में ग़लतफ़हमी हो गयी होगी और तुम्हे उसने मुझे समझ कर कुछ किया होगा. अब प्लीज उसके सामने ये बातें बोल कर हम दोनों को शर्मिंदा मत करो.”

रंजन: “आप प्रतिमा को यहाँ बुलाओ, और पूछो. मुझे सब कुछ साफ़ करना हैं. अगर कोई गलत फहमी हैं तो दूर होनी चाहिए.”

अशोक: “पुरानी बातें भूल जाओ रंजन, तुम्हारी सगाई होने वाली हैं. आगे बढ़ो.”

रंजन: “गलत फहमी एक बार हो सकती हैं. पर…”

इससे पहले की वो उस दिन बस के अंदर अगली सुबह के वक़्त हम दोनों के बीच दुबारा हुई चुदाई के बारे में बताये. जिसके बारे में अशोक को भी नहीं पता मैं हॉल में आ गयी और रंजन को आगे कुछ बोलने से रोक दिया.

मैं: “क्या हुआ, बहुत जोर की आवाज आ रही थी?”

रंजन: “देखो प्रतिमा, मैंने उस रात को बस में हमारे बीच जो भी हुआ अशोक को बताया, पर उसने आश्चर्य करने बजाय तुमको ही बचाने की कोशिश की. मुझे दाल में काला लग रहा हैं.”

अशोक: “ऐसा कुछ नहीं हैं. रंजन को कोई ग़लतफ़हमी अशोक हुई हैं.”

रंजन: “सच सच क्यों नहीं बता देते. प्रतिमा सच बताओ उस दिन बस में जो भी हुआ वो अशोक और तुमने जान बुझ कर किया था?”

मैं: “ये क्या बात कर रहे हो, साथ सोते सोते गलती से हाथ इधर उधर टच हो गया होगा.”

रंजन: “बात सिर्फ हाथ टच होने की नहीं हैं. तुम्हे अच्छे से पता हैं हमारे बीच सब कुछ हुआ था.”

मैं: “देखो, जो भी हुआ गलती से हुआ. मैंने अशोक को बाद में सब बता दिया था. अब आगे इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं.”

रंजन: “गलती से कर दिया! पर मैं तो उस दिन से चैन से नहीं रह पाया. जब भी रात को सोता था तो वही घटना मेरे आँखों के सामने घूमती थी. मेरे लिए तो वो आज भी एक सपना ही हैं. मैं तुम्हे भुला नहीं पाया हूँ.”

अशोक: “तुम अपनी मंगेतर के साथ नयी ज़िन्दगी शुरू करने वाले हो. उस पर ध्यान दो. उसके बाद तुम सब भूल जाओगे.”

रंजन: “ठीक हैं, मैं वो सब भूल जाता हूँ पर मेरी भी एक शर्त हैं. एक आखरी बार मैं प्रतिमा के साथ सोना चाहता हूँ.”

अशोक: “कैसी बातें कर रहे हो? वो तुम्हारी भाभी हैं. अगर एक गलती हुई उसका ये मतलब नहीं कि तुम ब्लैकमेल करो और मज़बूरी का फायदा उठाओ.”

रंजन: “फायदा तो आप दोनों ने मेरा उठाया था. अब मैं फायदा उठा रहा हूँ तो उसमे क्या गलत हैं. आप करो तो सही, और मैं करू तो गलत कैसे?”

मैं: “देखो रंजन, भाभी एक माँ की तरह होती हैं. उसके साथ तुम ऐसा करोगे, तुम्हे शर्म नहीं आएगी.”

रंजन: “शर्म तो उस दिन बस में भी नहीं आयी थी. आप समझ क्यों नहीं रहे हो. पिछले एक साल से भी ज्यादा हो गया हैं उस बात को और मैं वो सब भुला नहीं पा रहा हूँ. कभी कभी कुछ भुलाने के लिए एक बार फिर वो सब करना पड़ता हैं. मुझे सिर्फ एक मौका दे दो.”

अशोक: “रंजन, तुम्हारा ज्यादा हो रहा है. मैं तुम्हारी माँ से शिकायत कर दूंगा.”

रंजन: “उसकी जरुरत नहीं, मैं खुद ही बोल देता हूँ माँ को, उस दिन बस में क्या हुआ था.”

मैं: “एक मिनट रुको, बात को बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. तुम्हे किसी को कुछ कहने की जरुरत नहीं. तुम्हे क्या चाहिए बोलो?”

अशोक: “प्रतिमा, ये तुम क्या..”

रंजन: “मैं प्रतिमा को एक बार फिर से चोदना चाहता हूँ. उसके बाद मैं सब भूल जाऊंगा और कभी परेशान नहीं करूँगा.”

अशोक: “तुम्हारा दिमाग तो ठीक हैं?”

रंजन: “सोच लो, फैसला आप दोनों को लेना हैं.”

अशोक: “इसकी क्या गारंटी हैं कि तुम भविष्य में परेशान नहीं करोगे.”

रंजन: “मेरी सगाई और फिर शादी होने वाली हैं. मैं अपनी वाइफ के साथ बिजी हो जाऊंगा. फिर विदेश चला जाऊंगा.”

अशोक और मैं एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे. हमें जिस चीज का डर तब था वही अब हो रहा था. हमारे पुराने पाप हम पर भारी पड़ रहे थे.

अशोक: “प्रतिमा क्या तुम तैयार हो इसके लिए?”

मैं: “समाज में हमेशा के लिए बदनामी हो उससे अच्छा हैं मैं बंद कमरे में बदनाम हो जाऊ.”

रंजन की तो जैसे दिल की मुराद पूरी हो गयी. खुश होकर सोफे से उछलता हुआ खड़ा हो गया और बैडरूम में चला गया. मैं वही खड़ी रह गयी और अशोक की तरफ लाचारी से देखने लगी. अशोक ने सांत्वना दी कि बस एक बार की बात हैं जैसे तैसे सहन कर लो.

मैं भारी कदमो से बैडरूम की तरफ जाने लगी. अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया, ये काम मैं अशोक की आँखों के सामने तो नहीं करवा सकती थी. रंजन बिस्तर पर पाँव चौड़े कर पसरा हुआ था. मुझे देख कर कुटिल मुस्कान बिखेर दी.

खड़े खड़े ही मेरे दिमाग में एक विचार आया. मेरी तो वैसे भी शायद डीपू या संजीव के बच्चे की माँ बनने की सम्भावना काफी प्रबल थी. अब मैं ये सारा इल्जाम रंजन पर डाल सकती थी. क्यों कि ये सब तो पति की इजाजत से हो रखा था.

मुझे अब तक लग रहा था कि रंजन एक मुसीबत लेकर आया हैं, पर अब लगा कि वो तो मेरी मुसीबत का हल बन कर आया हैं.

उसने मुझे अपने पास बुलाया. मैं बिस्तर के कोने पर जाकर बैठ गयी. वो मेरे स्लीप शर्ट से बाहर उभरते हुए सीने के उभार को ही घूर रहा था. वो उठ कर मेरे पास आया और अपने दोनों हाथ मेरे शर्ट सहित मम्मो पर रख मसलने लगा.

पिछली बार बस में अँधेरे में किया था आज तो उसको लाइट के उजाले में सब कुछ साफ़ दिखने वाला था.

थोड़ी देर मेरे मम्मो के साथ खेलने के बाद उसने मेरे शर्ट के सारे बटन खोल दिए और शर्ट को मेरे शरीर से पूरा निकाल दिया.

मैं अब ब्रा में सकुचाते हुए बैठी थी. टाइट ब्रा से मम्में बाहर झाँक रहे थे. उनको साक्षात देख कर वो पूरा देखने को मचलने लगा.

उसने मुझे घुमा कर मेरी पीठ उसकी तरफ की और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया. फिर ब्रा को पूरा निकालने में जरा सा भी समय व्यर्थ नहीं किया. मैं अपने दोनों हाथ सीने से चिपका कर अपना स्त्रीधन छुपाने लगी. उसने मुझे फिर अपनी तरफ घुमाया.

मैं नजरे नीचे किये हुए एक दुल्हन की भाँती बैठी थी. उसने अपने दोनों हाथ मेरे एक एक कंधे पर रख दिया और अपने हाथ फिराते हुए मेरी बाजुओ से कोहनी और फिर कलाइयों तक ले आया. उसने मेरी कलाईयाँ पकड़ ली और उनको खिंच कर मेरे सीने से हटाने लगा.

उसकी ताकत के आगे मेरा क्या बस चलता, उसने मेरी दोनों कलाइयों को पकड़ कर नीचे कर दिया और मेरे दोनों मम्मे उसके सामने खुल के आ चुके थे.

मेरे हाथ पकड़े रखते हुए वह अब आगे झुका अपने होंठो से बारी बारी से मेरी दोनों चूंचियो को चूसने लगा. फिर वो मेरी चूंचियो के बीच के गुलाबी घेरो को अपनी गीली जबान से चाटने लगा.

मेरे दोनों मम्मो के आस पास के रोंगटे खड़े हो गए और छोटे छोटे दाने उभर आये. मेरे मम्मे फुलकर और बड़े हो गए और निप्पल तन गए.

उसने अपनी खुरदुरी जबान मम्मो और निप्पल पर रगड़ना जारी रखा और मैं अपनी सिसकी निकलने से नहीं रोक पायी. मेरी सिसकी सुनकर उसने और भी तेजी से अपनी जबान रगड़ते मेरे दोनों मम्मो को पूरा गीला था.

अब उसने अपने गीले होंठो को मेरे होंठो पर रख दिया और मेरे निचले होंठ को अपने होंठों के बीच में दबा कर रस लेने लगा. पिछली बार बस में वो मेरे मम्मे और होंठ को चूस नही पाया था तो इस बार वो कसर पूरी कर रहा था. मेरी तो पैंटी गीली होने लगी थी.

उसने अब मेरे होंठो को छोड़ा और मुझे बिस्तर के पास नीचे खड़ा कर दिया. मेरे आगे घुटनो के बल बैठते हुए उसने मेरे पाजामा को पैंटी सहित नीचे खिसकाना शुरू कर दिया.

पाजामा जांघो तक आया और उसको मेरी चूत के दर्शन भी हो गए. एक कुआंरे मर्द को चूत के दर्शन हो जाये तो वो पागल हो ही जाता हैं.

मेरा पाजामा को वही आधा खुला छोड़ वो मेरी चूत चाटने लगा. पाजामा आधा खुलने से मेरे पाँव चौड़े नहीं हो सकते थे, तो वो सिर्फ ऊपर से ही चाट पा रहा था. उसने अब जल्दी से मेरा पाजामा और पैंटी पैरो से पूरा निकाल दिया.

उसने अब मुझे बिस्तर के किनारे पर बैठा दिया और फिर पीछे धक्का मारते हुए बिस्तर पर लेटा दिया. मेरे पैर अभी भी बिस्तर से नीचे जमीन पर लटक रहे थे और धड़ बिस्तर पर लेटा था.

वो अब भी नीचे जमीन पर ही घुटनो के बल बैठा था और उसने मेरे पाँव चौड़े कर अपना मुँह मेरी चूत के होंठों पर रख दिया.

अब वो अपनी जबान और मुँह से खोद खोद कर मेरी चूत चाटने लगा. पानी तो पहले से ही बनने लगा था तो वो मेरे मीठे पानी का मजा ले रहा था.

मजे के मारे मेरी जोर जोर की सिसकियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. पता नहीं पति को बाहर मेरी सिसकियाँ सुनाई देगी तो क्या सोचेंगे. चूत चाटते चाटते जब उसका मन भर गया तो वो उठ कर बिस्तर पर आ कर मेरे पास बैठ गया.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैंट के अंदर के शैतान पर रख दिया. उसका लंड एकदम कड़क हो कर तैयार था. कपडे के अंदर होने के बावजूद भी मैं उसके लंड की गर्माहट अपने हाथों पर महसूस कर पा रही थी.

मेरी सिसकियाँ सुनकर अब तक उसको भी पता चल चूका था कि मुझे भी मजे तो आये थे, तो उसने मुझे अपना लंड चूसने को कहा.

मैं अब उठ कर बैठ गयी और वो लेट गया. मैंने उसका पजामा और अंडरवियर उसके पैरो से पूरा बाहर निकाल दिया. बंधन से मुक्त होते ही उसका लंड एक दम खड़ा हो गया.

मैंने उसका लंड अपने एक हाथ में भर लिया, वो एकदम गरम सलाखों के जैसा था गरम और कड़क. मैं उसके लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे रगड़ने लगी. उसकी सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी. उसने मुझे मुँह में लेने को कहा.

मैं अब आगे झुकी और उसका लंड अपने मुँह में उतार दिया. थोड़ा सा और गरम होता तो गरम चाय के जैसे मेरा मुँह जल गया होता. मैं लंड अपने मुँह में आगे पीछे धक्का मारते हुए रगड़ने लगी. इसके साथ ही उसकी सिसकियाँ और जोर से निकलने लगी.

थोड़ी देर इसी तरह उसका लंड मुँह में रगड़ने के बाद उसने कुछ बूंद पानी की मेरे मुँह में ही छोड़ना शुरू कर दिया.

पहले तो मैंने सहन किया, पर जैसे ही ज्यादा पानी निकलने लगा तो मैंने उसका लंड मुँह से बाहर निकाल दिया. उसका चिकना पानी मेरे मुँह में था और उस पर उसका लंड लौट रहा था तो बाहर निकलते ही मैंने देखा वो पानी से थोड़ा बहुत लिपट चूका था.

मैंने अपना मुँह पोछा. मैं अभी घुटनो के बल ही बैठी थी. वो उठ खड़ा हुआ और इस तरह बैठा कि उसका लंड मेरे दोनों मम्मो के बीच फंसा दिया और मुझे अपने दोनों मम्मे साइड से दबा कर उसका लंड मम्मो के बीच दबाये रखने का निर्देश दिया.

मैंने उसका कहना माना और वो मेरे मम्मो के बीच की गली में अपना लंड दबाये ऊपर नीचे रगड़ने लगा. उसका लंड तो पहले ही चिकना था, ऊपर से थोड़ा और पानी निकलने से मम्मो की दोनों घाटिया भी भीग कर चिकनी हो गयी. जिससे उसका लंड और भी आसानी से फिसलते हुए तेजी से दोनों मम्मो के बीच ऊपर नीचे रगड़ रहा था.

उसकी सिसकियाँ अब भी चालू थी. समय के साथ उसकी सिसकियाँ और भी बढ़ने लगी. उसका पेट मेरे मुँह के सामने ही था रह रह कर मेरे होंठ उसके पेट को चुम रहे थे. उसकी आहें इतनी तेज थी की बाहर अशोक को सुनाई दे रही होगी.

थोड़ी देर में तो उसके लंड से लावा फट पड़ा और मेरे सीने के दोनों पहाड़ो के बीच तैर फेल गया. मेरे सीने पर गरमा गरम पानी के छींटे हो रहे थे. वो बड़ी जोर से चीखते हुए अपने अंदर कब से जमा करके रखा सारा पानी मेरे ऊपर उँड़ेल चूका था.

वो अब मेरे ऊपर से हटा, मैंने मौका मुआयना किया. मेरे दोनों मम्मे और आस पास का इलाका पूरा उसके पानी से गंदा हो चूका था. असली काम करने से पहले ही वो झड़ चूका था.

मेरा तो आखिरी हथियार भी खाली चला गया. अब मैं रंजन पर मुझे गर्भवती होने का इल्जाम कैसे डालती. क्योकि अभी मुझे मेरे पति के दोस्त ने चोदा नहीं था.

आगे के एपिसोड में पढ़िये रंजन वही रुक गया या मेरे और भी मजे लेगा?

https://s.magsrv.com/splash.php?idzone=5160226

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close
Back to top button
Hacklinkbetsat
betsat
betsat
holiganbet
holiganbet
holiganbet
Jojobet giriş
Jojobet giriş
Jojobet giriş
casibom giriş
casibom giriş
casibom giriş
xbet
xbet
xbet
grandpashabet
grandpashabet
grandpashabet
İzmir psikoloji
creative news
Digital marketing
radio kalasin
radinongkhai
gebze escort
casibom
casibom
extrabet giriş
extrabet
sekabet güncel adres
sekabet yeni adres
matadorbet giriş
betturkey giriş
casibom
casibom
casibom
tiktok video indir
Türkçe Altyazılı Porno
betkom giriş
Casibom Giriş
deneme bonusu veren bahis siteleri
deneme bonusu
grandpashabet
marsbahiscasibom güncel girişligobetsetrabetmarsbahiscasibom güncel girişligobetsetrabet
marsbahismarsbahismarsbahismarsbahismarsbahismarsbahis